नरेंद्र मोदी ने दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ''सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास'' का मंत्र दिया और संविधान को नमन कर 130 करोड़ देशवासियों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूर्ण करने का बीड़ा उठाया।
लोकसभा चुनावों में प्रचंड जनादेश हासिल कर केंद्र की सत्ता में वापसी करने वाली मोदी सरकार ने कार्यकाल की शुरुआत ही बड़े राजनीतिक फैसलों के साथ की। इन राजनीतिक फैसलों में मजबूत इच्छाशक्ति भी दिखी और दशकों पुरानी समस्याओं को हल करने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता भी झलकी। अपने मजबूत राजनीतिक फैसलों की बदौलत आज प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के ताकतवर और लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं और वैश्विक नेता उनसे सलाह मशविरा करना पसंद करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से इस स्वतंत्रता दिवस पर जो संबोधन दिया उसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था कि जो काम आपने मुझे दिया मैं वही करने के लिए आया हूं, मेरा अपना कुछ नहीं है। वाकई सरकार कैसे चलायी जाती है, प्रशासन से काम कैसे करवाया जाता है, कैसे किसी बड़ी फैसले से पहले पुख्ता तैयारी की जाती है, यह सब देश ने दशकों बाद प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देखा है।
नरेंद्र मोदी ने दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' का मंत्र दिया और संविधान को नमन कर 130 करोड़ देशवासियों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूर्ण करने का बीड़ा उठाया। लोकसभा चुनाव परिणामों से एक ओर विपक्ष के महागठबंधनों की कमर टूट चुकी थी तो दूसरी ओर भाजपा आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रही थी। बरसों बाद देश ने देखा था कि कोई पूर्ण बहुमत वाली सरकार सत्ता में दोबारा लौटी है और कोई राजनीतिक पार्टी (भाजपा) कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा मत हासिल करने में सफल रही है। जाहिर है, प्रधानमंत्री के लिए जनादेश था- आप देश में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करिये, जनता आपके साथ है।
तीन तलाक विधेयक पारित होने से विपक्ष अभी सदमे से पूरी तरह उबरा भी नहीं था कि जम्मू-कश्मीर के विषय में मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला कर अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला कर लिया और संसद के दोनों सदनों की इस पर मंजूरी भी हासिल कर ली। मोदी के पिछले कार्यकाल में राज्यसभा में आकर सरकार के विधेयकों का सफर बाधित हो जाता था लेकिन इस बार बहुमत नहीं होने के बावजूद विधेयक धड़ाधड़ पारित करा पाने में मोदी सरकार सफल रही। सरकार का यह फैसला राजनीतिक इच्छाशक्ति का इतना बड़ा उदाहरण है कि पूरी दुनिया में इसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। प्रखर राष्ट्रवाद के रास्ते पर चलने वाली भाजपा की छवि इस फैसले के बाद इतनी मजबूत हुई है कि उसे आगामी विधानसभा चुनावों की भी ज्यादा चिंता नहीं है। भाजपा को लगता है कि देश ने देख लिया है कि दशकों पुरानी समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकने और जम्मू-कश्मीर का वास्तव में भारत के साथ विलय कर एक झंडा और एक संविधान का सपना सच कर दिखाने का जो साहस मोदी सरकार ने दिखाया है उसके बाद जनता पूरी तरह मोदी सरकार के साथ खड़ी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं कि यह जो प्रचंड बहुमत मिला है वह सिर्फ उन्हीं के नाम पर एनडीए को मिला है इसलिए वह भ्रष्टाचार और आतंकवाद और अपनी पार्टी में भी अशिष्ट और अमर्यादित व्यवहार को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर अडिग हैं। कानून प्रवर्तन एजेंसियां जिस तरह भ्रष्टाचार के मामलों में बिना किसी बाधा के कार्रवाई कर रही हैं, ऐसा बहुत समय बाद देखने को मिला है। किसने सोचा था कि पूर्व गृह मंत्री और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भ्रष्टाचार मामलों में कभी तिहाड़ जेल की सलाखों के पीछे होंगे। कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार, कमलनाथ के भतीजे रतुल पुरी और ऐसे ही कई अन्य बड़े नाम हैं जोकि अपने किये की सजा भुगत रहे हैं। प्रधानमंत्री ने हाल ही में कई सरकारी विभागों पर जो सीबीआई के छापे डलवाये उससे जनता के बीच यही संदेश गया है कि चौकीदार जागा हुआ है और चोरों को चोरी नहीं करने देगा।
आतंकवाद के मुद्दे पर मोदी सरकार ने जो सख्त दिखाई है वह काबिलेतारीफ है। कानून ऐसे सख्त हो गये हैं कि कोई आतंकी बच नहीं सकता, जांच एजेंसियों को पहले से ज्यादा मजबूत बना दिया गया है, सेना को अत्याधुनिक रक्षा साजो सामान मुहैया कराये जा रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र से लेकर दुनिया भर के देश भारत के साथ खड़े दिख रहे हैं, इसके अलावा पाकिस्तान को सरकार पूरी दुनिया में अलग-थलग करने में सफल रही है, आदि कदमों से जनता में यही संदेश जा रहा है कि सरकार सही दिशा में काम कर रही है और देश सुरक्षित हाथों में है।
मोदी सरकार की राजनीतिक मजबूती की बात करें तो लोकसभा में तो उसे प्रचंड बहुमत मिला ही अब राज्यसभा में भी उसकी ताकत में भारी इजाफा हो चुका है। मोदी सरकार-2 बनने के बाद से कई राजनीतिक दलों के राज्यसभा सांसद अपनी अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम चुके हैं और अब भाजपा के टिकट पर पुनर्निर्वाचित होकर भाजपा की संख्या में वृद्धि कर चुके हैं। यही नहीं गोवा में तो लगभग पूरे कांग्रेस विधायक दल का ही भाजपा में विलय हो गया वहां कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया। सिक्किम में जहां विधानसभा चुनावों में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था वहां विपक्षी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम कर उसे मुख्य विपक्षी पार्टी बना दिया। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश में भी अन्य दलों के विधायकों का भाजपा में आने का सिलसिला लगातार चल रहा है। लोकसभा चुनावों के बाद कई राज्यों की राजनीतिक स्थितियों में परिवर्तन आया है उसी के तहत अब कर्नाटक में भाजपा की सरकार है।